ग़ाफ़िल की कलम से
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यह शहरे-ग़ाफ़िल है, अदा भी निराली होगी,
वक़्ते-इस्तक़बाल, हर जुबान पे गाली होगी।
रुखे-ख़ुशामदीद ज़र्द नज़र आएगा,
और तो ठीक है बस बात ही जाली होगी॥
घर का दीवाला होगा, घर मेँ दीवाली होगी,
भरी दूकान होगी, जेब भर खाली होगी।
जिसकी दरकार जहाँ, होगा दरकिनार वही,
पुश्त मेँ बीवी और रू-ब-रू साली होगी॥
रोज़ होगा सियाह-वो- शब उजाली होगी,
दिखेगा सब्ज़ मग़र झमकती लाली होगी।
नहीँ मिसाल और होगा अहले दुनियाँ मेँ,
के कैश गोरा होगा लैला ही काली होगी॥
यह शहरे-ग़ाफ़िल है…
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